भारत के बीकानेर शहर और इटली के उदीने शहर में एक समानता है और यह चीज दोनों शहर आपस में बांटते हैं।
जो चीज समान है वह है पाटा… इसके बारे में अभी बताता हूं और क्या बांटते हैं वह लेख के आखिर में बताउंगा।
जो लोग बीकानेर के हैं या कुछ समय बीकानेर में रह चुके हैं उन्हें अजीब लगेगा कि इस विषय पर मैं कैसे लिख रहा हूं लेकिन मुझे पाटे पर लिखने का ख्याल कल रात को ही आया। हिन्दुस्तान टाइम्स के स्पेशल कोरस्पोंडेंट श्रीनंद झा, जो किसी पॉलिटिकल कवरेज के लिए बीकानेर आए थे, मुझसे फोन पर पूछा कि ये पाटा क्या होता है। मैंने जवाब में सवाल ही पूछा कि आपको इस बारे में किसने बता दिया?
उन्होंने कहा बता दिया किसी ने। क्या आप मुझे दिखाकर लाएंगे। मैंने कहा काम से फारिग होते ही आपको ले चलूंगा। उन्होंने समय पूछा तो मैंने बताया रात दस बजे ठीक रहेगा। वे अगले दिन की उम्मीद कर रहे थे और मेरे रात के दस बजे के प्रपोजल को सुनकर पशोपेश में पड़ गए। फोन की दूसरी ओर तक कुछ देर की शांति के बाद उन्होंने कहा ठीक है, चलते हैं। मुझे काम निपटाने में कुछ अधिक समय लग गया। रात साढे़ दस के बाद ही मैं उनकी आरटीडीसी की होटल तक पहुंच पाया। वे इंतजार कर रहे थे। उनका विचार था कि फोटोग्राफर को भी साथ ले लेंगे तो काम हाथों-हाथ निपट जाएगा। मैंने कहा तीन लोग चलेंगे तो कार लेनी पड़ेगी। पुराने शहर की तंग गलियों में कार मुश्किल से चल पाएगी, तो बाइक पर चलना ठीक रहेगा। फोटोग्राफर अगले दिन सुबह भी फोटो ले सकता है।
कुछ देर के डिस्कशन के बाद मेरी बात मान ली गई। झा को लेकर मैं शहर के मुख्य मार्गों से होता हुआ पुराने शहर की ओर बढ़ रहा था तो पहली बार मुझे शहर के बाहरी इलाके और तंग गलियों वाले पुराने शहर में अन्तर शिद्दत से महसूस हुआ।
अब पाटों की बात-
निकलने से पहले श्रीनन्दजी ने मुझसे थोड़ा ब्रीफ करने के लिए कहा। शुरुआती तौर पर मैंने जो बताया उसे झा ने कुछ इस तरह से समझा कि पाटा एक तरह का बड़ा दीवान होता है जो मोहल्ले के बीचों-बीच लगा होता है। इस पर कई लोग बैठते हैं। उनका सवाल था कि लोग करते क्या हैं पाटे पर? उनके लिए विषय नया था और मेरे लिए यह सवाल नया था। मैंने कहा सबकुछ। यानि हर तरह की गतिविधि पाटे से जुड़ी होती है। उन्होंने पूछा पाटे पर बैठते कौन लोग हैं। मैंने बताया हर तरह के पाटे पर अलग तरह के लोग नजर आएंगे। गुत्थी सुलझने के बजाय उलझती जा रही थी। झा को लगा चलकर देख लेना ठीक रहेगा वरना ये युवा पत्रकार उन्हें और उलझा देगा।
ऐसा दिखता है पाटा-
यह है आचार्यों के चौक का पाटा-
बीकानेर के तकरीबन हर मोहल्ले में पाटा है या कहूं कि पाटे हैं। पाटे पाटा का बहुवचन है। हर पाटे का अपना इतिहास है। मोहल्ले के बीचों-बीच शीशम की टनों लकड़ी से बना यह ऊँचा ‘दीवान’ सामाजिक कार्यों की धुरी बनता है।
खैर हम लोगों ने आचार्यों के चौक पहुंचकर पाटे पर बैठे लोगों से सीधे बातचीत शुरू कर दी। पहले मैंने मारवाड़ी में बोलते हुए बैठे लोगों को बताया कि ये झा सा’ब हैं और दिल्ली से हिस्दुस्तान टाइम्स अख़बार से आए हैं। अपने पाटे के बारे में जानना चाहते हैं। इसके बाद आधे घण्टे से अधिक लम्बे समय तक लोग बोल रहे थे। इसमें वर्ड बैंक के पूर्व निदेशक और वर्तमान राजस्थान सरकार के वित्तीय सलाकार विजय शंकर व्यास, विभिन्न शोधों के तेरह पेटेंट हासिल कर चुके हर नारायण आचार्य और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को अपने तख्त पर बैठा चुका पाटा मानो खुद बोल रहा था। कैसे हर सामाजिक कार्यों में पाटा लोगों को एक स्थान पर एकत्रित करता है, बुजुर्गों की शामें और रातें तक इस पर गुजरती हैं, युवाओं की बीवीओं को सौत लगने वाला पाटा कई सौ सालों की स्मृति संजोए आने वाली पीढ़ी को, बीती हुई पीढ़ी के साथ मौहल्ले के बीचों-बीच बैठकर देखता है। झा केवल हां-हां में सिर हिला रहे थे और उत्साहित बड़े-बूढ़े, अधेड़ और जवान लोग लगातार बोल रहे थे। कोई आधे घण्टे बाद मैंने यह कहकर झा को मुक्ति दिलाई कि इन्हें भट्टड़ों के चौक का पाटा भी देखना है। लोगों ने निकलते हुए कहा वहां तो आपको ज्योतिषियों की पूरी जमात मिल जाएगी। झा एक बारगी अचकचा गए। मुझसे पूछा तो मैंने बताया कि खुद ही देख लीजिए पूरी रात जगने वाले पाटे को।
भट्टड़ों के चौक का पाटा
यह पाटा पूरी रात जगता है। दिन में बड़े-बूढ़े इस पर बैठते हैं और जैसे-जैसे रात ढ़लती है यहां ज्योतिषियों का जमावड़ा शुरू हो जाता है। रात नौ बजे से सुबह पाँच बजे तक एक ज्योतिषी जाता है तो दूसरा आता है। धुरी में रहते हैं पंडित राजेन्द्र व्यास उर्फ ममू भईजी। कई बार वे आस-पास या कलकत्ता गए हुए होते हैं तो यह गहमा-गहमी कम होती है। लेकिन हमारा भाग्य प्रबल था। ममू वहीं मिल गए पाटे पर। अपने शिष्यों के साथ लैपटॉप पर किसी कुण्डली का विश्लेषण कर रहे थे। मैंने झा साहब का परिचय दिया तो उन्होंने गोत्र तक पूछ डाले। किसी समय मैं भी ममू के दरबार का हिस्सा रहा हूं। सो उनका स्वभाव जानता हूं। मैंने झा को ममू के हवाले कर किनारे हो गया। पाटा संस्कृति का दूसरा आयाम देखने के बाद झा बस नोट करते जा रहे थे। दो दिन पूर्व दिवंगत हुए आचार्यराज के बारे में पूरी जानकारी ली।
इसके बाद शुरू हुआ ज्योतिष का काम। बिना झा की कुण्डली देखे ममू ने प्रश्न कुण्डली बनाकर झा को उनके जीवन और परिवार के बारे में कई बातें बताई। जब झा को विश्वास हो गया तो उनसे जन्म समय और तारीख लेकर कुण्डली बनाई। इसके बाद तो ममू ने कई पन्ने खोलकर रख दिए। करीब डेढ़ घण्टे इसी पाटे पर व्यतीत हुए। यहां से देर रात रवाना होने के बाद मैंने झा से कहा कि बाकी पाटे मैं केवल आपको दिखा देता हूं। स्टोरी इन दो जगहों के आधार पर ही बन जानी चाहिए। झा सहमत थे। मैंने उन्हें मोहता चौक, कीकाणी व्यासों का चौक, हर्षों का चौक आदि स्थानों पर पाटे दिखाए और अंत में ले गया दम्माणी चौक के छतरी वाले पाटे पर। पूरे समय झा चुपचाप बस देखते रहे। बाद में देर रात जब मैं उनको वापस होटल छोड़ने गया तो उन्होंने धन्यवाद जैसी कुछ औपचारिकताओं के अलावा पाटे के बारे में कहा…
अद्भुद्
अब दूसरी बात बीकानेर और उदीने शहर टैस्सीटोरी के रूप में एक हस्ती को बांटते हैं। कुछ उनकी क्योंकि यह हस्ती वहां पैदा हुई और कुछ हमारी क्योंकि जिन्दगी का अधिकांश हिस्सा उन्होंने बीकानेर में रहकर काम किया और यहीं दिवंगत हुए। उनके बारे में विशद चर्चा फिर कभी...