बाबे के पीरत्‍व में कमी

बाबा रामदेव रूणीचा
भादवे ही दशमी को बाबा रामदेव का मेला भरेगा। एकम् को बीकानेर से हजारों पैदल यात्रियों ने 200 किलोमीटर से अधिक लम्‍बी यात्रा शुरू की। कई लोग तो बीकानेर से भी दूर से आए थे, जैसे हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर से। यानि यात्रा में कुछ सौ किलोमीटर और जुड़ गए। जैसलमेर के रूणीचा स्थित धाम जाने वालों में कुछ साल पहले तक हिन्‍दुओं को मुसलमानों की संख्‍या बराबर थी। यह ऐसा मेला है जहां जांत-पांत ऊंच-नीच खत्‍म हो जाते हैं। पूरा रास्‍ता श्रद्धालुओं से अटा होता है और मार्ग पर एक ही घोष होता है, जय बाबे री। यही पदयात्रियों को इतनी लम्‍बी यात्रा करने का जोश दिलाता है। इस बार हिन्‍दुओं की तुलना में मुसलमान बहुत कम दिखाई दिए। सही कहूं तो दिखाई ही नहीं दिए। मुझे पता नहीं क्‍या कारण रहा होगा, लेकिन दिखाई नहीं दिए सो बता रहा हूं। सालों से सुनता आ रहा हूं कि बाबा रामदेव जहां हिन्‍दुओं के लिए देवता है  वहीं मुसलमानों के लिए पीर है।
  • क्‍या बाबा रामदेव के पीरत्‍व में कमी हो गई है।
  • क्‍या बाबा कि केवल हिन्‍दुओं की मन्‍नत पूरी कर रहे हैं।
  • क्‍या मुसलमानों को इन सालों में उन्‍होंने कोई पर्चा नहीं दिया।
  • क्‍या लोकदेवता के आगे भी नेताओं की बनाई छद्म दीवार आड़े आ रही है।
  • क्‍या मुस्लिमों की सभी मन्‍नतें पूरी हो चुकी हैं।
अभी रमजान का पवित्र महीना चल रहा है। मुसलमान रोजा रखकर अपने तन और मन की शुद्धि में लगे हैं। दिनभर हर तरह की बुराई से दूर रहकर कठोर व्रत करते हैं और दिन ढलने पर रोजा खोलते हैं। इन सालों में रोजा रखने वाले बच्‍चों की संख्‍या में भी बढ़ोतरी हुई है। इससे मैं कह सकता हूं कि धार्मिक आस्‍थाएं कम तो नहीं हुई। अल्‍लाह पर मुसलमानों को अब भी गहरा भरोसा है। पर दोनों समुदायों को एक जैसा मानने वाले और हर आने वाले श्रद्धालु को श्रद्धा के अनुरूप पर्चा देने वाले बाबा रामदेव के प्रति रुचि कम होने का कारण सोचने के लिए मजबूर कर देता है।
वैसे मेरा यह ऑब्‍जर्वेशन बीकानेर तक ही सीमित है। हो सकता है दूसरे शहरों, दिशाओं, रास्‍तों और माध्‍यमों से मुस्लिम समुदाय के लोग रूणीचा पहुंचे होंगे। बीकानेर के मार्ग से जा रहे पैदल यात्रियों में इनकी संख्‍या कम देखकर कुछ उथल-पुथल हुई सो व्‍यक्‍त कर दी।