सालों पहले, यानि वर्ष 1997 और उससे पहले मेरे दिन के कुछ घंटे चाहे-अनचाहे होम्योपैथी के साथ गुजरते थे। रोग हो या न हो, सत्यव्रत सिद्धांतावलंकार, बोरिक और नैश पढ़ने को मिल जाते थे। कई बार क्लार्क की रैपरेटरी के पन्ने भी उलटने पड़ते। यह सब होता मेरे पड़नानाजी स्वर्गीय माधोदासजी व्यास के सानिध्य के कारण। मेरे नानीजी के पिताजी। कभी उन पर पूरी पोस्ट लिखूंगा। यहां बस यह उल्लेख कर देना चाहता हूं कि 78 साल की उम्र में उन्हें एक बार लगा कि होम्योपैथी दवाएं भी कारगर हो सकती हैं, और उन्होंने होम्योपैथी पढ़नी शुरू कर दी और बाद में एक रोगी को तो मृत्युशैय्या से लौटा लाए थे। वर्ष 1999 में उनके निधन के साथ होम्योपैथी का सफर भी थम गया। उनके बारे में बाकी बातें बाद में,
हां, मैं फिर से लौट आया हूं होम्योपैथी के साथ।
कुछ दिन पहले पैट्रोल पम्प से महज बीस कदम की दूरी पर पैट्रोल खत्म हो गया। मैंने सोचा जय गणेश, और उत्साह में अपनी पल्सर से उतरा और उसे घसीटने लगा। अभी पांच सात कदम ही गया होउंगा कि ब्लैक आउट हो गया। आंखों के आगे अंधेरा। मैं जहां का तहां खड़ा रह गया। इसके कुछ दिन बाद शिक्षा निदेशालय की सीढि़या तेजी से चढ़ गया, ऊपर के माले पर पहुंचकर फिर वही स्थिति हुई। मैंने किसी को कहा तो नहीं लेकिन ऑफिस में कचौरी समोसे खाने बंद कर दिए, जो रोजाना शाम को किसी न किसी बहाने आ जाते हैं।
निदेशालय में ही मिले शिवकुमार आचार्यजी उर्फ भाईजी, एक दिन वहां की कैंटीन में ही कचौरी की शर्त लग गई। मैंने कहा खाउंगा तो नहीं लेकिन हार गया तो खिला दूंगा। इस पर भाईजी ने पूछा क्यों, पहले तो मैं टाल मटोल करता रहा लेकिन बाद में मैंने उन्हें बता दिया। उन्होंने मुझे कहा एक बार मेरे घर आना। तब तक मुझे पता नहीं था कि वे होम्योपैथी का अध्ययन करते हैं। उन्हें सेंट्रल नर्वस का कोई डिसऑर्डर हुआ था बीसेक साल पहले, तब ऐलोपैथी के सभी ईलाज आजमाने के बाद उन्होंने होम्योपैथी पढ़नी शुरू कर दी थी। नर्वस डिसऑर्डर तो अभी भी वहीं है लेकिन दूसरे कई रोगों को ठीक करने में उन्होंने महारत हासिल कर ली है।
भाईजी के यहां गया तो वहां भाभीजी ने चाय के साथ भुजिया और खाखरे परोसे। मैंने चाय पी ली लेकिन दूसरी किसी चीज को हाथ नहीं लगाया। इस पर भाभीजी तो नाराज हो गए लेकिन भाईजी मुझे अपने कमरे में ले गए। वहां उनकी अलमारी में होम्योपैथी की दवाओं का भण्डार बना हुआ था। उन्होंने मुझे गैस मिक्सचर नाम की एक दवा की खुराक दी। गैस के कारण सिरदर्द हो रहा था। वह तुरंत ठीक हो गया। तुरंत से मतलब पांच-सात मिनट में। इसके बाद उन्होंने मुझे नक्स वोमिका 200 लाकर दी। कहा रात को सोते समय कुछ दिन ले ले। तनाव के कारण तेरा शरीर खराब हो रहा है। गैस मिक्सचर और नक्स ने तीन दिन में मुझे सिरे से बदल दिया। गर्दन और पेट के किनारे बढ़ रही चर्बी एक साथ खत्म हो गई और शरीर में पुरानी फुर्ती लौट आई।
अब फिर से सफेद हो रहे बालों के लिए एसबीएल का जोबरांडी का तेल और शैम्पू ले आया हूं। एक-दो दिन में फाइव फॉस भी फिर से ले आउंगा। पुरानी सब बातें वापस याद आने लगी हैं। हो सका तो अगले कुछ दिन में होम्योपैथी के कुछ और पक्षों के बारे में लिखने को मिल जाएगा।
मेरे पड़नानाजी माधोदासजी व्यास को नमन् और भाईजी को दिल से धन्यवाद…