मद्धम होते सितारों की छांव में
ढलते चांद ने एक बार फिर
झूठा दिलासा दिया,
कल फिर मिलेंगे
तब मेरा यही रूप
और यही रंग होगा।
जेठ की गर्मी
नागौरण की तपिश
और लू से बेखबर
मैं सपने लेता रहा दिन में
रात को तारों की छांव में
चुपके से आए चांद ने फिर
दिखाया नया रूप, नया रंग
एक बार फिर मैं उसे
अपलक देखता रह गया…