अनाथ चंपूबाई के दो मामा हैं। छोटे हैं जो हल्दी की गांठ लेकर पंसारी की दुकान चलाते हैं और बड़े ट्रेडिंग से जुड़े हैं। वे पुराने सामान से लेकर घर के बर्तनों तक की ट्रेडिंग करते हैं। जब चंपूबार्इ के बड़े मामा की शादी पक्की हुई तो ससुराल वालों ने पूछा था कि मामा क्या करते हैं। तो नानी ने अश्वत्थामा हतोहत: की तर्ज पर झूठ बोल दिया कि बड़ा बर्तन बेचता है। उनके ससुराल वालों को बाद में बहुत गुस्सा आया जब पता चला कि बड़ा तो घर के ही बर्तन बेचता है और पैसा बैंक में जमा कर देता है। शादी में मिले बर्तन भी बड़े ने बेच दिए और पैसा बैंक में जमा करा दिया। नाना ने पूछा कि क्या करोगे बेटा पैसा जमा करके। तो बेटा बोला किसी दिन लौटा लाएंगे बड़ी योजनाओं के लिए। तो नाना ने समझाया बड़ी योजनाएं तो मेरा खून चूसने के लिए ही बनाई जाती है फिर तेरा पैसा कहां काम आएगा। लेकिन बड़ा अड़ा रहा। बर्तन बिक गए। घर में खाना पकना बंद हुआ तो घर के बच्चों ने सर्वशिक्षा अभियान के तहत मिल रहे मिड-डे मील को खाना शुरू कर दिया। बड़ा मामा खुश था। क्योंकि नाना के ही पैसों से अभियान चल रहा था। बड़ी योजना थी।
अब हाल छोटे का। नाना ने सोचा कि छोटे की भी शादी कर देते हैं। बहु कान खींचेगी तो बड़े से धन निकलवा लेगा। शादी हो गई। शादी होते ही छोटा प्रसन्नचित्त रहने लगा। न दिन का ख्याल न रात का जीभरकर मजे लूट रहा था। नाना को गुस्सा आ गया। एक दिन बिस्तर से बाहर खींचा और फेंक दिया बड़े के कमरे के आगे। और कोई चारा न देखकर छोटा बड़े के कमरे में डरते-डरते दाखिल हुआ और पता नहीं क्या सांठ-गांठ हुई कि बड़े ने कई बड़ी योजनाएं छोटे को पकड़ा दी। छोटा खुशी-खुशी योजनाएं लेकर अपने कमरे में दाखिल हो गया। नाना देखते रह गए। अब दोनों मामाओं की पांचों अंगुलियां घी में और सिर कढाही में। बाकी बच गए तीन जन। नाना, नानी और अनाथ चंपूबाई। न बड़े ने खाने का पूछा न छोटे ने। दोनों अपनी-अपनी बीवीयों और बच्चों के साथ होटल गए और खाना खा आए। चंपूबाई अब भी देख रही थी। धान की गैळ में दोनों मामाओं को घर में बैठी चंपूबाई दिखी ही नहीं। दोनों अपने-अपने कमरों में जाकर सो गए। रात को बड़ी मामी ने मामा से पूछा चंपू ने क्या खाया तो बड़े ने कहा छोटा लाया होगा चंपू के लिए। उधर छोटी मामी ने मामा से पूछा तो छोटे मामा ने कहा बड़ा कुछ लाया होगा चंपू के लिए। दो मामाओं की भानजी चंपू को कुछ नहीं मिला।
भूखी चंपूबाई रातभर भूख से तड़पती रही। कुछ दिन यही क्रम चलता रहा। चंपूबाई की भूख बढ़ी तो बाहर निकली और गंगू के घर पहुंच गई। वहां जमकर खाया और घर के राज बताए। गंगू को यही तो चाहिए था। वह घर में घुसा और तोड़-फोड़ मचाकर निकल गया। मामा सोते रह गए। सुबह मामाओं की आंख खुली तो पता चला कि घर में तोड़ फोड़ हुई है। अब दोनों एक दूसरे पर दोष मंढने लगे। चंपूबाई रातभर की जागी हुई थी और भोर में खाना मिला था सो लम्बी तान के सो गई। नाना भूखे बैठे किनारे की ओर बैठे देख रहे थे और हंस रहे थे। शाम ढलने तक मामा लड़ते रहे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।
जब तक राज्य और केन्द्र के मामाओं के बीच हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा यो ही भूखों मरेगी तब तक घर में आतंकी हमले होते रहेंगे। घर को योजनाओं के नाम पर मामा खा रहे हैं और चंपूबाई भूख से बेहाल होकर गंगू के हाथों दो रोटी की एवज में बिक रही है। अब तक मेरी समझ में यह स्पष्ट नहीं है कि करप्शन ऊपर से नीचे आता है या नीचे से ऊपर जाता है।