कम्युनिज्म जब अपने स्वर्णकाल में था तब भारत के कई साम्यवादी विचारधारा वाले नेताओं को रूस बुलाया गया था। उसी खेप में मेरे ताऊजी शिवकिशन जोशी भी रूस जाकर आए थे। अपने जीवनकाल में मार्क्स के अंधभक्त बने रहे। हर सवाल का मार्क्सवादी जवाब उनके पास हमेशा तैयार रहता। किसी भी घटना या स्टेटमेंट को वे वर्ग संघर्ष से जोड़ देते। सुनने वाला बस मुंह बाए देखता रहता। उत्तरी पश्चिमी राजस्थान में लेफ्ट को कई बार सफलता भी मिली है। श्योपत सिंह ने तो जैसे इतिहास ही रच दिया था।
ग्लोबलाइजेशन के बाद मार्क्सवाद नीचे आ रहा था और युवाओं की बजाय पुराने घिसे पिटे लोग ही अधिक नजर आते थे। ज्यादातर साम्यवादी कुण्डली मिलान कर विवाह कर चुके थे और घर के कोनों में मंदिर भी स्थापित कर चुके थे। मार्क्स के बाद इन साम्यवादियों को बस ऊपरवाले से ही चमत्कार की उम्मीद बाकी थी। ऐसे में एक दिन मेरे ताऊजी अपने कुछ साथियों के साथ प्रख्यात ज्योतिषी के पास पहुंचे और उन्हें आगामी एक महीने के सभी मांगलिक दिनों की जानकारी मांगी। ज्योतिषी भी हैरान कि कामरेड ज्योतिष में कब से विश्वास करने लगे। उन्होंने दो चार तिथियां बताई। लेकिन कामरेड सभी तिथियों की मांग कर रहे थे। कुछ देर तो ज्योतिषी महाशय ने संयम बनाए रखा फिर चिढ़ गए। बोले भाई कामरेडों आप लोगों को कब से मुहूर्त की जरूरत पड़ने लगी। तो कामरेड भी मुस्कुरा दिए। बोले हमारे एक बड़े नेता यहां आने वाले हैं। और हम चाहते हैं कि कोई बड़ा भवन किराए पर लेना चाहते हैं। एक दो तिथियां बताई तो भवन वालों ने बुकिंग हुई होने का कहकर उन्हें टाल दिया। इसलिए वे पता करना चाह रहे थे कि कौन-कौनसे दिन मांगलिक हैं जिनमें अच्छे काम होने हैं। ताकि उन दिनों को टालकर बाकी दिनों पर विचार कर आम सहमति से दिन तय करने की कोशिश की जाए।
ज्योतिष महाशय ने यह सुना तो उनका पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। पांचांग तो छोड़ दिया और कामरेडों को भद्दी गालियां देने लगे। मेरे ताऊजी साथ में थे सो उन्होंने किसी तरह पंडितजी को शांत किया और किसी दूसरे ज्योतिषी से तारीखें निकलवाई।
पिछले दिनों कामरेडों की दूसरी शक्ल भी देखने को मिली। एमपी का चुनाव लड़ रहे एक कामरेड को पता चला कि बीकानेर में एक हनुमान मंदिर है। उनका नाम है पॉलिटिकल बाबा। उनका आशीर्वाद मिलने से बेड़ा पार हो जाता है। साथ ही उन्हें यह सूचना भी पहुंचा दी गई थी कि भाजपा के प्रत्याशी यहां पहले ही आशीर्वाद लेने पहुंच चुके हैं। सो कामरेड अपने दल बल के साथ आए हनुमान बाबा का आशीर्वाद लेने। बातचीत में तो वे यही कहते रहे कि यह क्रांतिकारियों की धरती है लेकिन दबे स्वर में यह भी स्वीकार कर रहे थे कि जात पांत के असर को तो देखना ही पड़ेगा। बाबा के दर्शन के बाद कामरेड ने मंदिर के पास ही रहने वाले एक ज्योतिषी महाराज का आतिथ्य भी स्वीकार किया। वही ओज, वही तेज और उतने ही तेज स्वर में विचारों का संप्रेषण। मुझे ताऊजी याद आ गए। लेकिन एक अलग रूप में। पता नहीं कहां है मार्क्स और उसका वर्ग संघर्ष…
यह थी दो कामरेड और दो विचारों की एक तस्वीर।