#कोरोना# मेरा अनुभव#
कोरोना और उसके कारण किया गया lockdown। वास्तव में सबकी ज़िन्दगी ही बदल गयी।वक्त मानो ठहर से गया।ऐसे हालात, ऐसी परिस्थिति जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नही की थी। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में जब कभी किसी के पास सांस लेने का भी वक्त नहीं था ; वह पूरी तरह से फुर्सत में था और शायद मैं भी उनमें से एक थी। जिंदगी मानो पूरी तरह से वीरान हो चुकी थी। मेरी व्यस्त दिनचर्या मेरा स्कूल और मेरे बच्चों (students) से दूर होने की वजह से मैं अब पूरी तरह से उदास हो गई थी ।
वक्त मानो थम गया था,और मैं धीरे धीरे depression की और बढ़ रही थी।इन सबके बीच खुद को संयमित करते हुए स्वयं खुद का इलाज किया।अपनी काउंसिलिंग स्वयं की।और खुद को सम्हालने की दिशा में मेरा पहला कदम लेखन की और बढ़ा।चूंकि मुझे बचपन से ही लेखन का शौंक रहा; परन्तु समय अभाव के चलते लेखन कर नही पाती।जब एक मित्र द्वारा झकझोरा गया कि “यह समय भगवान ने आपको दिया है।वो आपसे कुछ करवाना चाहते हैं।आपको लिखना चाहिए।”
इसी शौंक को पूरा करते मेरा समय पंख लगाकर उड़ने लगा।मैं कविताएं लिखने लगी ।शिक्षिका होने के कारण दोहरी जिम्मेदरियों का निर्वहन करते हुए कभी अपने लिए समय ही नही मिला।पर अब मेरे पास समय ही समय था। मैंने अपना जीवन खुल के जिया।योगा, व्यायाम, मेडिटेशन इन सब के लिए भरपूर समय का प्रयोग किया।
रचनात्मक कार्य,कुकिंग आदि के जरिये पति और बेटी के साथ मिलकर एक नया जीवन जिया।अब सबकुछ अच्छा लगने लगा। दूर दराज से पुराने मित्रों, सगे संबंधियों के फ़ोन, उनका खैर खबर पूछना ,सब दिल मे उमंग ला रहा था।हमसब कितने पास आ गए थे।सबके पास एक दूजे के लिए समय था। टीवी पर आने वाली रामायण और महाभारत ,सबका मिलकर देखना मानो बचपन के दिन लौट आये थे। चारो तरफ एक प्यार का , स्नेह का, सहानुभूति का माहौल था।सतयुग मानो लौट आया था। लोग एक दूसरे के प्रति चिंतित थे।घरों, मंदिरों, गुरुद्वारों से दिनभर भोजन बनकर गरीब परिवारों और मज़दूरों में बंट रहा था। ज़रूरतमंद को राशन, मास्क,साबुन, सेनेटाइजर दिए जा रहे थे।ये सब मन को सुकून दे रहा था और मन शांत हो रहा था।
इन सब के बीच फिर से मन विचलित हुआ, जब गरीब मज़दूरों को परिवार सहित पैदल सैकड़ों किलोमीटर पैदल गाँवों की यात्रा करते देखा।मन द्रवित हो उठा।आंख बार बार ईश्वर की ओर रहम की भीख हेतु अश्रुधार बहा रही थी। मन ईश्वर के अस्तित्व पर ऊँगली उठा रहा था।परमात्मा इतना क्रूर कैसे हो सकते हैं।ईश्वर की अटूट आस्था से बंधा ये मन उनके होने पर सवाल खड़े कर रहा था। फिर मज़दूर special ट्रेन की बात से मन को कुछ आराम मिला। ये कब सुरक्षित अपने घर पहुंचे,ये तो मैं नही जानती;लेकिन खुद को हर परिस्थिति में साहसी और मज़बूत बनाने का संदेश मुझे इन मज़दूरों से ही मिला।जीवन संघर्ष की जीती जागती मिसाल से मज़दूर मानो मुझे ज़िन्दगी का एक नया सबक सिखा गए।जीवन में कभी हार न मानने का सबक़ ।
लेखिका- मोना बनेजा