कभी न भूलने वाला अनुभव मुझे हुआ, मेरे पति के पैर की हड्डी टूट गई थी। एक सप्ताह अस्पताल में रह कर हम घर आ गए। एक या दो दिन बाद लोक डाउन शुरू हो गया। ऐसे समय में कोई नर्स या डॉक्टर को घर बुलाना मुश्किल हो गया। जरूरी दवाइयां भी मुश्किल से मिल रही थी। मेरा एक बेटा नैरोबी में था, और उसका परिवार मुंबई में। दूसरा हाउसिंग बोर्ड चौपासनी 16 सेक्टर में रहता था। जो यहां रहता था, वो हमारे पास आता तो कई जगह पुलिसकर्मि इन्हें रोकते व पूछ ताछ करते थे। फिर भी जैसे तैसे ये आते तो मेरे पति को बेटे व बहु को देख कर खुशी होती थी। ये लोग आते समय जरूरी सामान भी ले आते थे। कुछ दिन बाद मेरे पति की तबियत ज्यादा बिगड़ी तो मेरा बेटा व बहु यहां मेरे पास सो जाते थे।
बच्चों को हमारे घर तक आने के लिए सरकार से पास बनवा रखे थे। उन पास की अवधि 14 एप्रेल को समाप्त हो थी। और उसी दिन मेरे पति की तबियत भी बिगड़ गई थी। मेरे बेटे ने दौड़ भाग कर के अपने पापा जी के पैर का प्लास्टर कटवाया, तथा यूरिन की नई ट्यूब भी लगवाई। फिर मेरा बेटा राजू मेरे से बोला मै पुलिस थाने जा नया पास बनवाकर आता हूँ। वो चला गया और कुछ ही समय बाद मेरे पति ने प्राण त्याग दिये।
मैने फोन करके तुरन्त बच्चों को बुलाया। अपने रिश्तेदारों को भी खबर कर दी। लेकिन इस कोरोना ने सारे रिश्तों की सच्चाई से अवगत करा दिया। ऐसे में मेरे ससुराल से मेरे जेठ जी के बेटे व उनके मित्र आगए। आगे के सब क्रिया कर्म हुए, लेकिन इस बीमारी का कितना खोफ होता है, मुझे उस दिन समझ में आया।
लेखिका – Pratima Purohit