समस्या को इस दृष्टिकोण से देखने के बाद मैंने अपने जानकार उद्यमियों को आध्यात्मिक होने की सलाह दी तो उन्होंने मुझी से पूछा, क्यों पंडित जी अब धंधा छोड़कर पूजा-पाठ में लगना पड़ेगा। मैंने जबाव दिया, नहीं।
आध्यात्मिक होने का अर्थ पूजा-पाठ कतई नहीं है। शेयर बाजार में जहां यह कहा जाता है कि ईमानदार दोस्त खोजने की बजाय कुत्ता पाल लेना बेहतर है ऐसे में कोई तो ऐसा होना चाहिए जो कि आपकी बात को सुनकर समाधान सुझाए। यहां एक बार फिर में वैज्ञानिकों की खोज का हवाला देते हुए बताना चाहूंगा कि वैज्ञानिक कहते हैं कि हम अपनी दिनचर्या में अपने दिमाग का महज एक प्रतिशत हिस्सा ही काम में लेते हैं। शेष 99 प्रतिशत भाग अवचेतन मस्तिष्क के पास होता है।
हमारा आध्यात्मिक रुझान इसी 99 प्रतिशत हिस्से से हमारे लिए अतिरिक्त ऊर्जा और समाधान चुराता है। यानि आध्यात्मिक होकर अपनी सहायता खुद ही कर रहे होते हैं। रहा सवाल पूजा पाठ का यह तो मात्र बाहरी उपांग हैं। वास्तविक रुप से तो हमें उस ईश्वर का ध्यान करना है जो हमें सही रास्ता दिखा सके। आप भी गौर करेंगे तो पाएंगे कि जो लोग ईश्वर की शरण में रहते हैं वे अपनी सामान्य जिन्दगी में तनावों को खुद से दूर रखने में सफल होते हैं।
तो सुबह या शाम के समय खुद और ईश्वर में किया गया समय का जरा सा निवेश हमें अच्छा फायदा दिला सकता है।