बीस साल की उम्र में बॉस्केटबॉल खेलना शुरू किया था। कुछ लोगों का विचार था, कि तब तक मेरी खेल शुरू करने की उम्र बीत चुकी है, लेकिन अगला एक साल मैंने खेल सीखा और तीन साल तक कोर्ट पर जमकर जलवे दिखाए। इससे एक वहम पक्का हो गया कि मैं जब भी खेलना शुरू करूंगा, तब ऐसा ही खेल लूंगा। पर, मेरे एक गुरुजी कहते थे कि वहम और खेल का आपस में वैर है। या तो वहम रहेगा या खेल। तब मैं समझा नहीं।
खेल छोड़ने के छह साल बाद आखिर दस दिन पहले एक बार फिर बॉस्केटबॉल कोर्ट पर पहुंचा तो उसी अंदाज में खेलने की कोशिश करने लगा। इस बीच शरीर की काफी शक्ति और अभ्यास का नुकसान हो चुका था। ऐसे में हंस की चाल में चलते कौअे को नए खिलाडि़यों ने देखा। फिर भी ढिठाई के साथ वैसे ही प्रयास करता रहा। उस दिन का खेल खत्म होने के बाद खुद पर शर्म आई। घर आया तो शरीर का जोड़ जोड़ दुख रहा था। टांगें कांप रही थी और मुंह से बोल नहीं निकल रहे थे। पत्नीजी ने पूछा कि चाय बना लाऊं तो हां का जवाब भी नहीं निकल रहा था। आखिर कुछ देर में तंद्रा टूटी तो हौले से कहा नींबू पानी। सालों बाद यह पानी अमृत की तरह लग रहा था। दस मिनट बाद बोली खुली तो बताया कि हालत पस्त है। मेरी शक्ल से ऐसा नहीं लग रहा था, लेकिन शरीर अंदर से टूट गया था। रात को ढंग से नींद नहीं आई।
पहले दिन के झटके ने वहम को चकनाचूर कर दिया था। अगले दिन शाम को कोर्ट पर एक नौसिखिए खिलाड़ी की तरह पहुंचा। साथी खिलाडि़यों से पहले पहुंचा और कुछ देर वार्म अप किया। इसके बाद स्टेप बाइ स्टेप खेलना शुरू किया। पहले शूटिंग, फिर लैप शॉट और बाद में थ्री प्वाइंटर। लैप शॉट के दौरान तो जैसे जमीन मुझे नीचे की ओर खींच रही थी। किसी जमाने में जहां मेरा एयर स्टे मेरी शान हुआ करता था वहीं आज जमीन छोड़ना भी भारी महसूस हो रहा था।
आज दस दिन हो गए खेलते हुए। कल शाम एक नए खिलाड़ी ने कहा भाई ने दस दिन में अपना खेल ठीक सुधार लिया। किसी जमाने में मेरे कोच ने यही बात कही थी। टांगे कल शाम भी टूटी और शरीर का सत भी निकला हुआ था, लेकिन एक जूनियर खिलाड़ी के इन शब्दों ने जैसे शरीर को अतिरिक्त ताकत दे दी। अब आज शाम शायद और बेहतर खेल पाउं…