मुझे लगता है हां, कई बार यह इतनी अधिक हो जाती है कि समझ में नहीं आता कि इसका क्या किया जाए। तब या तो इसे नष्ट करने के तरीके ढूंढने लगते हैं या फिर उसे डायवर्ट कर देते हैं। वास्तव में पूरी ताकत का क्या किया जाए इसका जवाब काफी टेढ़ा है। गांधी, नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, कृष्ण मेनन, चेतन भगत, नेपोलियन, हिटलर, डेंजिल वाशिंगटन, इंदिरा नुई, इंदिरा गांधी, सचिन तेंदुलकर सहित हजारों नाम गिनाए जा सकते हैं। वही बहत्तर हजार आठ सौ चौसठ नाडि़यां और वही फेफडे़ होने के बावजूद प्रयासों में जमीन आसमान का अन्तर है। तो क्या शरीर से इतर दिमाग की कोई नस ऐसी भी है जो बाकी के हिस्से को खोलने से रोकती है।
कुछ भी हो ताकत तो वही है, फिर कौनसी चीज है जो हमें रोकती है…
क्या है जो उन्हें लगातार आगे बढ़ने और अनजान की ओर जाने का साहस देता है…
कौनसी शक्ति इसके पीछे काम करती है्…
कैसे वे अपनी शक्ति को नियंत्रित कर पाते हैं…
यह भाग्य तो नहीं हो सकता क्योंकि भाग्य की बात की जाए तो इनमें से अधिकांश लोगों ने आम लोगों से अधिक दुर्भाग्य झेला होगा…
क्या वास्तव में हम अपनी ताकत से डरते हैं… ?