जब से ये आस्तित्व में आया, धीरे से इसकी बात चली..
हुई प्रभावित दुनिया सारी,हर एक मोहल्ला गली गली।
शहर हमारे आया बढ़कर, बाजार दुकाने बन्द हुई..
लगा सीरियस मसला ये,जब आफिस और ट्रेने बंद हुई।
बंद हुऐ स्कूल बीच मे, जिम जाना भी बंद हुआ..
फिर हमने धीरे धीरे, बाहर जाना भी बंद किया।
मोदी जी आये समझाने,सबको घर मे रहना होगा..
इसी तरह इस कोरोना से,मिलकर सबको लड़ना होगा। टेक्नोलॉजी का यूज हुआ,और हुआ वर्क फ्रॉम होम..
सब्जी हो या राशन घर का, होम डिलीवरी होती रोज़।
दिन भर चलता टीवी घर मे, पल पल देखी कोरोना खबरें..
देख देख हालात दुनिया की, दुःख और भय की हालत दिल मे। लोग नही रुकते थे घर मे, लाठी लेकर पुलिस समझाये..
हमे बचाने हर मुश्किल से, कोरोना के योद्धा आये।
निकल पड़े मजदूर जो घर से, देख देख मन द्रवित हुआ..
पर भाई भाई है सब भारत मे,सबने एक दूजे का साथ दिया। हॉस्पिटल की स्थिति डराती,डॉक्टर्स की मेहनत रंग लाती.. कोरोना का ग्राफ उठ रहा, हर दिन बढ़ने की खबरें आती।
बात मदद की जब आयी तो, वॉचमैन का टिकट कराया..
जब तक हुई टिकट में देरी, प्रतिदिन उसको भोजन करवाया। हुआ साल भर याद सताई, मायके की थी टिकट कराई..
हुई कैंसिल ट्रैन रुकी सब,अभी मायके जा ना पाई।
सूने पड़े गाँव के झूले, आम और महुआ न भूले..
मात पिता का प्यार पुकारे,अब वीडियो कॉल पर मिलते हम सारे। फिर धीरे धीरे मन समझाया,घर मे ही मन को बहलाया.. बरस हुए है 6 शादी को, खूब पति संग वक़्त बिताया।
तरह तरह की डिशेज बनाई, बच्चे को शतरंज सिखाई..
साथ लगा लगने अति प्यारा, छोटा सा संसार हमारा।
बातो में जाते शाम सवेरे, कोरोना के अनुभव मेरे…
रौद्र रूप प्रकृति दिखलाये, आंधी बाढ़ भूकंप भी आये..
प्रकृति से जो खिलवाड़ किये थे,अब वो हमको आंखे दिखलाये।
माफ करो अब ईश्वर मेरे, कब तक रहोगे नज़रे फेरे..
कोरोना को करो विदा बस, आने दो अब नए सवेरे।
कभी बजाई थाली घर में, कभी गेट पर दीप जलाये..
कोरोना ये कैसे कैसे,तूने हमको दिन दिखलाये।
भले बुरे कुछ मीठे खट्टे, कुछ अच्छे कुछ बुरे रहे है,
कोरोना के अनुभव मेरे…
लेखिका- पूजा चतुर्वेदी .