मैं सच्ची मुच्ची इल्ली बन गया था। जब तक मुझे अपनी गलती का तब तक तो मैं पेस्टिसाइड से त्रस्त इल्ली की तरह तड़प रहा था। बहुत साल पहले शरद जोशी का व्यंग्य पढ़ा था, जीप में सवार इल्लियां, तब चने के खेत में घूम रहे सरकारी अधिकारियों पर कटाक्ष करते हुए शरद जोशी ने उन्हें फसल को तबाह करने वाली इल्लियों की संज्ञा दी थी। तब पढ़ते हुए मुझे सरकारी अधिकारियों से घृणा होने लगी थी, लेकिन बाद में मैंने भी वही गलती की…
हुआ यूं कि, कुछ साल पहले हमारे एक वरिष्ठ साथी के अवकाश पर जाने के कारण मुझे यहां राष्ट्रीय शुष्क बागवानी संस्थान की रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी दी गई। मैंने सोचा शोध संस्थान है तो निश्चय ही शोध संबंधी अच्छी खबरें मिलेंगी। सो पहले दिन ही पूरे जोश से पहुंच गया और प्रधान वैज्ञानिक के कमरे में बैठकर काफी देर तक उनसे कभी यह कभी वह पूछता रहा। पता नहीं अधिकारी ने क्या समझा, उन्होंने बातों के बीच मुझे बताया कि हमने बेर की सैकड़ों किस्में विकसित की हैं। और इन दिनों उनमें से काफी में फल आए हुए हैं। चलिए मैं आपको दिखा देता हूं।
वैज्ञानिक महोदय मुझे लेकर पहुंच गए संस्थान के रिसर्च फील्ड में, जहां बेर की छोटी-बड़ी झाडि़यों पर लाल, पीले बेर लगे हुए थे। कुछ बिल्कुल बेर थे, तो कुछ नींबू जितने और कुछ छोटे सेव के आकार के भी थे। मैं उनके बारे में कुछ जानकारी लेता, उन्होंने झाड़ी के सबसे अच्छे बेर उतारकर मुझे दिए। मैंने मना कर दिया…
लेकिन उनका आग्रह चलता रहा, कुछ देर बाद ही बेर के स्वाद और क्वालिटी के बखान के साथ आग्रह प्रबल हो गया, मैंने बेर खाने शुरू कर दिए। करीब पंद्रह प्रजातियों के तीस से अधिक बेर खाने के बाद रिपोर्ट लेकर ऑफिस आ गया।
अभी स्टोरी बना ही रहा था कि पेट में दर्द शुरू हो गया। कुछ देर तक मैंने इग्नोर किया, लेकिन दर्द था कि बढ़ता ही जा रहा था। कुछ देर में तो ऐसी ऐंठन हुई कि सीधा भी बैठ नहीं पा रहा था। आखिर उठा और पास के मेडिकल स्टोर पर जाकर पेटदर्द की दवा ली। इसके बाद भी घंटेभर तक ऐंठन वाला दर्द बना रहा। रात आठ बजे तक मेरी स्थिति में कुछ सुधार हुआ।
अब सोचने का मौका मिल रहा था। कुछ देर सोचने के बाद मेरी हंसी छूट गई। हमारे वरिष्ठ साथी ने पूछा क्या हुआ तो मैंने कहा आज मैं इल्ली बन गया था। शरद जोशी की इल्लियां जीप में सवार होकर चने को खराब करने पहुंची थी, भले ही मैंने ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाया लेकिन काम तो वैसा ही किया था।
आज ये किस्सा ध्यान में दोबारा इसलिए आया कि पिछले दिनों मुझे राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र की बीट सौंपी गई, पहली विजिट में ही वहां के पीआरओ ने मुझे कैमल मिल्क से बनी आइसक्रीम खिलाने का ऑफर दिया… इल्ली वाला किस्सा ध्यान में आते ही मैंने आइसक्रीम के लिए सख्ती से मना कर दिया…
वह पीआरओ अब भी सोच रहा है कि मैं केन्द्र से नाराज हूं जबकि मैं इल्ली बनने से बचने की कोशिश कर रहा हूं…
पता नहीं भलमानस में या आग्रह नहीं टाल पाने के कारण कितने लोग इल्ली बन जाते होंगे… क्या आप भी बने हैं कभी इल्ली…