बीकाणे में जमा होली का रंग
कहते हैं बीकानेर में होली गुजरने के छह महीने तक उसका असर बना रहता है और छह महीने पहले होली की रंगत शुरू हो जाती है। यहां के व्यासों को तो साल के किसी भी दिन होली की तरंग में आने की बाकायदा छूट मिली हुई है। वे कभी भी कुछ भी कर सकते हैं। अब जब होली में कुछ ही दिन बाकी बचे हैं तो होली की रंगत परवान पर चढ़ चुकी है। तंग गलियों, खुले मोहल्लों और शहर की फसील से सटी चाय-पान की दुकानों पर होली के रसिए शाम ढलते ही एकत्रित होना शुरू हो जाते हैं। डफ (चंग) के साथ के साथ रसियों की फौज जैसे मस्ती का माहौल बनाती है, उसे देखकर आने जाने वाले भी रुककर कुछ देर संगीत का आनन्द लेते हैं।
ऐसो बंसी बजई रे कान्हा महलां में सुणीजे रे…
महलां मांई मोरनी अर नाचण लागी रे… ऐसो..
रात गहराने के साथ धोरों से लिपटकर आई बयार फिजा में कुछ ऐसी मस्ती घोल देती है कि आठ से साठ सभी मस्ती की तरंग में झूमने लगते हैं। बीकानेर में शाकद्वीपीय ब्राह्मणों की खेलणी सप्तमी के दिन से होली की अधिकारिक घोषणा हो जाती है। यानि इस दिन से होली की मजाक, गीत और तराने हर कहीं सुनाई देने लगते हैं। अब किसी ने बुरा माना तो वह खुद बुरा बन जाएगा। तैयार रहिए होली की मजाक के लिए।
अगली पोस्ट में बताउंगा होली की रम्मतों और गीतों के बारे में…