मेरे एक वरिष्ठ साथी ने मुझे एक गधे की कहानी सुनाई। कहानी मैंने कई दिन पहले सुनी लेकिन अब भी मेरे दिमाग में यह कहानी घूम रही है। सो अब इसे अपने ब्लॉग पर डाल रहा हूं।
एक गांव में एक धोबी के पास एक गधा था। उस धोबी के घर के पास एक सूखा हुआ गहरा कुआं था। रोजाना गधा कुएं के पास से गुजरता। एक दिन गधा कुएं में गिर गया। उस समय धोबी घाट पर था। गधे की किसी ने सुध नहीं ली। वह शाम तक कुएं में गिरा कहराता रहा। शाम को मालिक घर आया तो उसने देखा कि गधा कुएं में गिर चुका है। अड़ोस पड़ोस के लोग एकत्रित हो गए। सबने मिलकर निर्णय किया इस घरों के बीच खुदा हुआ यह सूख कुआं खतरनाक हो सकता है सो इसे भर दिया जाए। गांव वालों ने मिट्टी लाकर कुएं में डालनी शुरू की। यह गधा कृष्ण चंदर के गधे की तरह इंसानों की बातों को समझने वाला था।बस इसमें अधिक अक्ल यह थी कि कभी इंसानों की बोली नहीं बोलता था। उसने सुना कि उसे जिंदा दफन करने की तैयारी हो रही है। पहले पहल तो वह गधा खूब रेंका और अपनी ही भाषा में चिल्लाता रहा कि हरामखोर धोबी मैंने जिन्दगीभर तेरी गुलामी की तूं उसकी यह सिला दे रहा है।
लेकिन गधे की बात किसी ने नहीं सुनी। कुएं को भरना शुरु कर दिया गया। जैसे जैसे कुएं में मिट्टी गिरती गई गधा चतुराई से मिट्टी के ढेर पर चढ़ता रहा। घण्टों की मशक्कत के बाद गांव वालों ने कुएं को मिट्टी से भर दिया। ढेर पर चढ़ता हुआ गधा भी ऊपर तक आ गया। अपने गधे को सुरक्षित देख मालिक चिल्लाया कि मेरा गधा वापस आ गया। लेकिन अब तक गधे का मन भी फिर चुका था। उसने अपने ही मालिक को दुल्लती मारी और बोला कौनसा मालिक कैसा मालिक। मुझे तो तुम कुएं में ही दफन कर रहे थे।
ऐसा कहकर गधा चला गया और मालिक देखता रह गया। कुछ गधे अब भी बड़े संस्थानों में काम कर रहे हैं। जब वे कुएं में गिरेंगे तो उन्हें निकालने के बजाय उन पर मिट्टी ही डाली जाएगी। 🙂