सोशल मीडिया का गैर जिम्‍मेदाराना रवैया

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सुनने में आ रहा है कि सरकार सोशल मीडिया पर गाली गल्‍लौज करने वाले ट्रोल पर कार्रवाई कर सकती है। निजी तौर पर मैं सोचता हूं क‍ि सरकार का यह कदम बहुत सराहनीय है। कारण यह नहीं है क‍ि सरकार सोशल मीडिया पर लगाम लगाने का प्रयास कर रही, इससे मुझे खुशी है, बल्कि गाली गल्‍लौज करने वालों ने ही वास्‍तव में गंभीर रूप से सरकार का समर्थन या विरोध कर रहे लोगों को जबरिया कटघरे में खड़ा कर दिया है।

जिस बात को शालीनता से कहा जा सकता है, उसी बात को गाली गल्‍लौज में कहने से न केवल बात का प्रभाव समाप्‍त हो जाता है, बल्कि जो उचित संदेश भेजना होता है, वह भी अपना लक्ष्‍य खो देता है।

सोशल मीडिया पर मैं जितने गंभीर लोगों को जानता हूं, उनमें से 99 प्रतिशत लोग सावधानी से पूरे तर्क के साथ अपनी बात लिखते हैं, अगर किसी को गाली भी लिखते हैं, तो वह ऐसी शालीनता लिए हुए होती है, कि बात का प्रभाव बढ़ता ही है।

यहां हर कोई पहलवान अजीतसिंहजी की गालियों के बारे में सोचेगा, लेकिन यहां मैं स्‍पष्‍ट करना चाहूंगा क‍ि उनकी पोस्‍ट पर गालियां सीधे व्‍यक्ति को संबोधित करने के बजाय व्‍यवस्‍था या विचार के प्रति होती है, दूसरे गालियां उनकी लेखन शैली का हिस्‍सा है, न कि किसी को संबोधित करने का तरीका। ऐसे में पहलवानजी की नकल करना आसान नहीं है, वे गाली निकालकर भी बच जाएंगे, क्‍योंकि उन्‍होंने किसी व्‍यक्ति विशेष को संबोधित नहीं किया होता है।

गौर करेंगे तो पाएंगे कि अधिकांश फेक अकाउंट वाले और पेड मीडिया कंटेंट लिखने वाले घृणासूचक शब्‍दों और गालियों को ऐसा उपयोग करते हैं, जो किसी व्‍यक्ति को संबोधित की गई होती है। बाकी असली आईडी वाले कुछ भावुक लोग उन फेक अकाउंट से आ रहे मैटर को ज्‍यों का त्‍यों फॉलो करने लगते हैं और गाली महोत्‍सव ही शुरू हो जाता है।

लोकतंत्र है, हर एक को बोलने की आजादी है, लेकिन एक बंदे की हवा में घूंसा घुमाने की आजादी दूसरे आदमी के नाक शुरू होने से पहले खत्‍म भी हो जाती है। सोशल मीडिया पर गंद मचा रहे लोगों को समझना होगा कि आजादी का अधिकार अपने साथ स्‍वच्‍छ लोकतंत्र का कर्तव्‍य भी लेकर आता है, अगर कर्तव्‍य का पालन नहीं किया जाएगा तो सरकार को कदम उठाना ही पड़ेगा।

अगर मैं कहूं कि पिछले दिनों विदेश मंत्री के खिलाफ चली मुहीम में जो गालीबाजी हुई है, उसी की प्रतिक्र‍िया के रूप में प्रियंका चतुर्वेदी की आड़ लेकर गृह मंत्रालय कार्रवाई की तैयारी कर रहा है, तो संभवत: गलत नहीं होगा।

सोशल मीडिया जवान हो रहा है, बेहतर है कि जितनी जल्‍दी हो अपनी जिम्‍मेदारियां समझ ले, मेन स्‍ट्रीम मीडिया समाप्‍त हो रहा है, वह मरते हुए पूरी ताकत से फड़फड़ाएगा ही… अखबार बंद हो रहे हैं, चैनल घाटे में चल रहे हैं और वेबसाइट्स का बाजार इतना फैल चुका है कि न्‍यूज वेबसाइट को कंटेंट मिलना मुश्किल हो रहा है।

ऐसे में अगर मेन स्‍ट्रीम मीडिया पूरी ताकत के साथ और सरकार को साथ में लेकर भी सोशल मीडिया पर हमला भी करता है, तो इसे सोशल मीडिया की ताकत के रूप में ही देखना चाहिए।